कैसे करें उत्तराखंड gk की तैयारी:
अक्सर लोग पूछते हैं कि pcs या अन्य परीक्षाओं की तैयारी कैसे करें?आपकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए इस अंक में हम uttarakhand gk tricks बताने वाले हैं.उत्तराखंड compettive exam के लिए हम बहुआयामी notes लेकर आये हैं.
दोस्तो किसी भी प्रतियोगी परीक्षा को पास(pass) करने के लिए खुद के पास एक अलग method होनी चाहिए.
आपने हमारी पिछली सीरीज देखी होगी.पौड़ी जनपद के जो विषय कल छूट गए थे, उसको आज के इस अंक में पूरा करने वाले हैं.पौड़ी जनपद में प्रमुख स्थलों की जानकारी आगे देखिए.
Uttarakhand gk Tricks: भाग -2 पौढ़ी जनपद प्रमुख स्थल:
लैंसडाउन:
लैंसडाउन एक प्रमुख पर्यटक स्थल है. uttrakhand gk exam paper में यहां से question पूछे जाते हैं.लैंसडाउन की स्थापना 4 नवंबर 1887 में हुई. 1890 में ब्रिटिश वायसराय लैंसडाउन आए थे जिनके नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा।
पहले इसका नाम कालो का डांडा था .भारतीय सेना की विख्यात गढ़वाल राइफल्स का कमांड ऑफिस यहीं पर स्थित है. यहां प्रसिद्ध कालेश्वर महादेव का मंदिर भी है.
दरबान सिंह नेगी व गब्बर सिंह के स्मारक व म्यूजियम यहां के दर्शनीय स्थल है।
लैंसडाउन में गढ़वाल रेजीमेंट युद्ध स्मारक 1923 में बना।
गढ़वाली मैस 1888 ईस्वी में बने लैंसडाउन की पुरानी इमारत है.
कण्वाश्रम
यहां पौड़ी गढ़वाल में स्थित एक प्राचीन विद्यापीठ है कण्वाश्रम हेमकूट एवं मणिपुर पर्वतों के मध्य तथा मालिनी नदी के तट पर स्थित है.2017 के pcs paper में यहां से based question पूछा गया था.तब से ये रिपीट होता रहता है.uttarakhand gk की प्रैक्टिस करनी है तो short gk tricks को समझना चाहिए.
प्राचीन काल में यह वैदिक शिक्षा एवं सांस्कृतिक प्रचार प्रसार का केंद्र था. महाकवि कालिदास ने भी यहां शिक्षा प्राप्त की थी. और यही मालिनी नदी के तट पर अभिज्ञान शाकुंतलम् की रचना की थी।
महाकवि कालिदास ने कण्वाश्रम क्षेत्र को किसलय प्रदेश कहा।
यह आश्रम विद्यापीठ राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम प्रसंग के लिए जाना जाता है. यही राजा भरत का जन्म भी हुआ था.
दुगड्डा

दुगड्डा लंगूर व सिलगाड नदी के संगम पर स्थित है .19वीं शताब्दी में पंडित धनीराम मिश्र ने बसाया था। यह स्थान साहित्यकार शिव प्रसाद डबराल (चारण) का साधना स्थल है।
इसका प्राचीन नाम निथोपुर था. गढ़वाल क्षेत्र में कुली बेगार प्रथा, डोला पालकी आंदोलन, आर्य समाज की स्थापना एवं स्वराज प्राप्त की भावना को जागृत करने का श्रेय इसी नगर को है. बद्री दत्त पांडे, जयानंद भारती, मुकुंदी लाल बैरिस्टर के यहां आने के कारण राजनैतिक क्षेत्र से यह नगर स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख गढ़ बना रहा।
पंडित जवाहरलाल नेहरू 1930 में पहली बार तथा 1945 में दोबारा दुगड्डा आए थे ।
चंद्रशेखर आजाद 1930 में और साथी भवानी सिंह रावत दुगड्डा आए और जंगलों में 7 दिनों तक पिस्टल चलाने की ट्रेनिंग ली।
दुगड्डा में शहीद मेले की शुरुआत भवानी सिंह रावत ने की।
देवलगढ़
यह गढ़वाल राजाओं की राजधानी रही है. जो कि बाद में श्रीनगर में स्थापित हुई। यहां राजराजेश्वरी का प्राचीन मंदिर है. यह गढ़वाल नरेशों की कुलदेवी के रूप में प्रसिद्ध है.
देवलगढ़ को गढ़वाल राजा अजयपाल द्वारा 1515 ई0 में राजधानी बनाई गई। यहां नाथ संप्रदाय के काल भैरव का मंदिर है.
खिरसू
खिरसू प्रदूषण मुक्त एक शांत पर्यटन स्थल है. यहां से बर्फ से ढकी हुई श्रृंखलाओं एवं उनका मनोरम दृश्य दिखता है. इसके निकट बांस एवं देवदार के वन व सेब के बागान हैं.
पौड़ी जनपद में चलाये गए कुछ महत्वपूर्ण आंदोलन:uttarakhand gk question:
किसी भी प्रतियोगी exam के लिए सामाजिक,राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन के लिए चलाए गए आंदोलन प्रमुख होते हैं
पाणी राखो आंदोलन
पाणी रखो आंदोलन 1980 में उफरैंखाल पौड़ी गढ़वाल से शुरू हुआ. यह आंदोलन गढ़वाल में पानी की कमी को दूर करने के लिए सच्चितानंद भारती द्वारा चलाया गया।
दूधातोली विकास संस्थान की स्थापना 1982 उफरैंखाल पौड़ी गढ़वाल में सच्चिदानंद भारती के द्वारा की गई।
गुजड़ू आंदोलन
गढ़वाल का बारदोली गुजड़ू क्षेत्र को कहा जाता है. इस आंदोलन के प्रणेता राम प्रसाद नौटियाल थे. यह आंदोलन 1942 के आसपास हुआ।
उत्तराखंड के प्रमुख मंदिर (जनपद पौड़ी)
uttarakhand general knowledge की practice के लिए मन्दिर समूहों को उनके अल्फाबेटिक ऑर्डर में रखकर याद करना चाहिए.
बिनसर महादेव

पौड़ी व चमोली के बॉर्डर पर दूधातोली श्रेणी पर स्तिथ है . यह देवस्थल अपनी पुरातत्व सम्रद्ध के लिये प्रसिद्ध है।इसी को तालेश्वर दानपत्रों में वीरणेश्वर स्वामी कहा जाता है कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ बडा मेला लगता है।
ज्वाला या ज्वाल्पा देवी

देवी दुर्गा को समर्पित इस क्षेत्र की प्रसिद्ध ज्वाल्पा देवी मंदिर नयार नदी के तट पर स्थित है
कमलेश्वर मंदिर
मान्यता के अनुसार यहां भगवान राम ने शिव की एक हजार कमल के फूलों से उपासना की थी. भगवान राम को ऐसा लगा कि एक फूल कम है .तब उन्होंने प्रायश्चित में अपनी एक आंख भेट कर दी थी। यह मंदिर संतति दाता या पुत्र दाता के रूप में प्रसिद्ध है।
कोट महादेव
कोट महादेव का मंदिर पट्टी सितोंनस्यू में स्थित है. यह स्थल महर्षि वाल्मीकि तपस्थली भी रही है. मान्यता है कि लव- कुश द्वारा राम के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा रुकने से राम का यहां आगमन हुआ था।
इसके अलावा- धारी देवी मंदिर, राहु देवता मंदिर, कंडोलिया देवता, ताड़केश्वर महादेव, डाडा नागराज मंदिर, माणिक नाथ मंदिर, गरुड़ मंदिर,कटकेश्वर महादेव मंदिर आदि मंदिर समूह पौड़ी जनपद में स्थित है.
उत्तराखंड ,पौड़ी जिले के प्रमुख मेले
नीलकंठ का मेला
यह मेला पौड़ी जिले में मणिपुर पर्वत की तली में ऋषिकेश में लगता है
बिनसर महादेव मेला
यह प्रसिद्ध मेला पौड़ी गढ़वाल में दूधातोली पर्वत श्रृंखला पर लगता है।
मनसार मेला
यह मेला पौड़ी में कोट के पास सितोनस्यूं पट्टी में लगता है जहां माता सीता धरती में समाई थी।
सिद्धबली मेला
यह प्रसिद्ध मेला पौड़ी में कोटद्वार के पास खोह नदी के तट पर लगता है।
इसके अलावा- गैंदा कौथिक,सात खून माफ मेला ,दनगल मेला, कण्डा मेला, मुंडनेश्वर मेला, भुवनेश्वरी देवी का मेला आदि पौड़ी जनपद में लगते हैं।
जनपद पौड़ी की प्रमुख नदियां ,ताल, और कुंड (uttarakhand saamaany ज्ञान दर्शन)
उत्तराखंड का पामीर- दूधातोली
उत्तराखंड का का पामीर दूधातोली श्रृंखला को कहा जाता है .यह पौड़ी, अल्मोड़ा व चमोली जिले में फैला है.
इस श्रृंखला से पांच नदियां निकलती है-
- पश्चिमी रामगंगा
- पूर्वी नयार
- पश्चिमी नयार
- आटागाड़
- विनो
नयार नदी पौड़ी की व्यास घाटी के पास फूलचट्टी नामक स्थान पर गंगा नदी में मिलती है. नयार नदी का निर्माण पश्चिमी व पूर्वी नयार का सतपुली के पास मिलन से बनी है.
पूर्वी नयार का नाम स्यूसीगाड़ व पश्चिमी नयार का नाम ढाईज्यूली गाड़ है।
पश्चिमी रामगंगा दूधातोली से निकलने वाली सबसे बड़ी नदी है. यह 155 किमी0 बहने के बाद पौड़ी की कालागढ़ नामक स्थान पर राज्य से बाहर हो जाती है.( बिरमा, बीनो,व गगास) पश्चिमी रामगंगा की सहायक नदी है.
कालागढ़ बांध परियोजना रामगंगा नदी पर ही स्थित है.
पौड़ी के दूधातोली के पास दुग्ध ताल स्थित है.
तारा कुंड झील भी पौड़ी गढ़वाल में स्थित है.
पौड़ी जनपद के प्रमुख समाचार पत्र:
तरुण कुमार पत्रिका का संपादन 1922 में बैरिस्टर मुकंदी लाल द्वारा लैंसडाउन से किया गया।
1935 में हितेषी समाचार पत्र का संपादन रायबहादुर पीतांबर ने लैंसडाउन में किया।
1939 में कर्मभूमि का संपादन भक्त दर्शन व भैरव दत्त धूलिया ने लैंसडाउन से किया।
1975 में गढ़ गौरव समाचार पत्र का संपादन कोटद्वार में कुँवर द्वारा किया गया.
Conclusion:
uttarakhand gk tricks भली -भांति compettion की books से मिलान कर तैयार की गई है.किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए आप संपर्क कर सकते हैं.
ये भी पढ़े–
सामान्य ज्ञान उत्तराखंड Download pdf:हरिद्वार जनपद भाग -1