शिक्षा से बुद्धि का, बुद्धि से मनुष्य का और मनुष्य से समाज का विकास होता है .आज के इस लेख में स्वामी विवेकानंद के शिक्षा पर विचार क्या थे? और शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए, और साथ ही स्वामी विवेकानंद ने भारत में शिक्षा के प्रसार के लिए क्या उपाय किए आदि कुछ महत्वपूर्ण उद्धरण यहां दिए जा रहे हैं.
स्वामी विवेकानंद ने अल्पआयु में ही भारत सहित विश्व को ज्ञान की नई रोशनी दी है.उन्होंने अपने दर्शन में जिस बात को सबसे अधिक प्रमुखता दी है वह है शिक्षा.वास्तव में उनके शिक्षा पर दिए गए विचार अमूल्य हैंं.आज जब समाज विखर रहा है लोगों का नैतिक पतन हो रहा है, चारित्रिक पतन हो रहा है,ऐसे वक्त में स्वामी जी के विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं.
बुद्ध और विवेकानंद :
‘कर्मयोगी’ स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन और विचारों का गहनता से अध्ययन किया जाए तो,उनमें भगवान बुद्ध की झलक दिखाई पड़ती है.भगवान बुद्ध ने भी ध्यान द्वारा ज्ञान प्राप्ति की बात की है,और विवेकानंद जी ने भी ध्यान पर जोर दिया है .मगर भारत में जो भी महापुरुष बुद्धत्व की राह पर चलने की बात करता है ,रूढ़िवाद,अंधविश्वास, और जातिवाद का घोर खण्डन करता है,उसके मूल विचारों से भटकाकर हिंदुत्व के प्रचारक के रूप में पेश किया जाता है.विवेकानंद के साथ भी यही किया गया है.वे धर्म की बात तो करते थे,मगर कैसा धर्म चाहते थे?ये बात छुपाई गयी है.अगर सही मूल्यांकन किया जाए तो विवेकानंद के विचार और सन्देश बुद्ध के काफी करीब हैं. विवेकानंद जी ने खुद यह स्वीकार किया है कि “बुद्ध हिंदू धर्म के सुधारक थे”.

स्वामी विवेकानंद के शिक्षा पर विचार:
जीवन का रहस्य भोग में नहीं पर अनुभव द्वारा शिक्षा https://www.google.com/amp/s/hindi.speakingtree.in/blog/content-344417/m-liteप्राप्ति में है .यह स्वामी विवेकानंद जी का सबसे पहला उद्घोष है. शिक्षा के संबंध में सांसारिकता और भौतिकवाद से दूर सत्य की तलाश में जीवन यापन करने वाले स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन आज की पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है .स्वामी विवेकानंद का दर्शन और उनका संदेश आज की भटकती हुई युवा पीढ़ी के लिए एक मार्गदर्शक सीड़ी हो सकती है.
विवेकानंद का संपूर्ण जीवन और शिक्षा सही दिशा में जीने के लिए सब को प्रेरित करती है. स्वामी विवेकानंद ने कर्मयोग का संदेश दिया. विवेकानंद के दर्शन में स्वतंत्रता और सामाजिक उत्थान का भाग है. उनका जीवन और विचार भारत के लोगों को सांस्कृतिक सम्मान, चिंतन और प्रगति के लिए प्रेरित करते है.
1-” पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता और एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान. ध्यान द्वारा ही हम इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं .सम ,दम और तितिक्षा अर्थात मन को रोकना,इंद्रियों को रोकने का बल, कष्ट सहने की शक्ति और चिंतन की शुद्धि तथा एकाग्रता को बनाए रखने में ध्यान बहुत सहायक सिद्ध होता है
- 2- “वास्तविक शिक्षा मनुष्य में पहले से विद्यमान पूर्णता की अभिव्यक्ति है. शिक्षा वह है जो हमारे जीवन के मूल्यों को दर्शाए”
युवाओं के लिए विवेकानंद का संदेश:
स्वामी विवेकानंद शारीरिक मजबूती और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की बात करते है.वे कहते हैं:-
“सबको सबसे पहले अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए .आपको धरती की तरह सहनशील होना चाहिए. आपको वायु की तरह स्वतंत्र, पौधों और कुत्ते की तरह विनम्र होना चाहिए.”
स्वामी जी चाहते थे कि देश की युवा पीढ़ी रूढ़िवादिता, अंधविश्वास और पाखंड से दूर रहे .और अपनी ऊर्जा का प्रयोग देश की तरक्की के लिए करें .इसलिए उनके जन्मदिन को “युवा दिवस “के रूप में मनाया जाता है. विवेकानंद के जीवन में विचारों की क्रांति पैदा करने वाले उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने एक बार कहा था कि विवेकानंद 1 दिन दुनिया को शिक्षा देंगे और बहुत जल्द अपने बौद्धिक शक्तियों से विश्व पर गहरी छाप छोड़ेंगे.वास्तव में यह बात हकीकत साबित हुई.
आत्मविश्वास पर विचार:
“आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं. यही हमारी उन्नति में सबसे बड़ा सहायक होता है.उठो, जागो! तुम हर काम कर सकते हो, तुम्हें हर काम करना चाहिए. आप में उच्च नैतिकता का भाव होना चाहिए. अगर आप इससे हटे तो खत्म हो जायँगे.”

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स्त्रियों के बारे में विवेकानंद के विचार:
विवेकानंद ने अपने दर्शन और प्रवचनों में सबसे अधिक जोर शिक्षा पर दिया.वे शिक्षा को मानव की पूर्णता की मंजिल मानते थे.उनके अनुसार शिक्षा को चरित्र निर्माण और मानवता के प्रति मानवता का व्यवहार,समानता का व्यवहार, अंधविश्वास से मुक्तिबोध दिलाने वाली होनी चाहिए.उनके स्वामी जी ने जोर देकर स्त्री शिक्षा के संबंध में यह कथन व्यक्त किया है:-
पहले अपनी स्त्रियों को शिक्षा दो और उन्हें उनकी स्थिति पर छोड़ दो, तब वह तुमसे बताएंगी कि उनके लिए क्या सुधार आवश्यक हैं. उनके मामले में बोलने वाले तुम कौन हो?
स्वामी विवेकानंद
अंधविश्वास और धर्म के विषय में विवेकानंद के विचार:
किसी रीति रिवाज से भयभीत हो जाना सभी अंधविश्वासों का जनक है, जो नरक का प्रथम मार्ग है. वह हठधर्मी और धर्मांधता का मार्गदर्शक है. सत्य स्वर्ग है धर्मांधता नरक है.
स्वामी विवेकानंद
संन्यासी कौन?
संन्यासी को कैसा होना चाहिए,साधु को कैसा जीवन व्यतीत करना चाहिए,संन्यासी का सत्य मार्ग क्या होना चाहिए इन सब बातों पर स्वामीजी ने स्पष्ट सन्देश दिया है.भारत के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संन्यासियों पर की गई उनकी टिप्पणी पर ध्यान से गौर करने की जरूरत है.आज संन्यासी कौन,राजनेता कौन,बलात्कारी कौन,हत्यारा कौन,पाखंडी कौन ?पहचानना मुश्किल हो गया है.कौन कब किस वेश में आकर लूट ले पता नहीं चलता.ऐसे में विवेकानंद के विचार और ज्यादा प्रासंगिक हो जाते हैं .देखिये उन्होंने संन्यासियों पर क्या कहा है:-
सन्यासी का कोई मत या संप्रदाय नहीं हो सकता ,क्योंकि उसका जीवन स्वतंत्र विचारों का होता है .और वह सभी मत- मतान्तरों से उनकी अच्छाइयां ग्रहण करता है. उसका जीवन अनुभव का होता है, न कि केवल सिद्धांतों का अथवा रूढ़ियों तथा अंधविश्वासों का .
विवेकानंद।
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