आज के पावर ऑफ पेन के कालम में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहिन मायावती की कहानी लिखेंगे.उनके संघर्स और त्याग ने भारत के वंचित,शोषित और दलित ,पिछड़े वर्ग में नई चेतना का संचार किया है.

बहिनजी के नाम से लोकप्रिय बहुजन समाज पार्टी की मुखिया सुश्री मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली में हुवा .पिता स्व श्री प्रभु दयाल –डाकर विभाग में बाबू के पद पर थे.माँ श्रीमती रामरती घरेलू महिला हैं.जाटव समाज में जन्मी बहन मायावती ने अपना पूरा जीवन बहुजन समाज के लिए समर्पित कर रखा है.आज भारत की संसद में 131 सुरक्षित सीटों से जीते सांसद अनुसूचित जाति और जनजाति से हैं.मगर जब भी वंचित समाज के हक और संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है,बहन मायावती ही शेरनी की तरह दहाड़ती हैं.उनके त्याग और संघर्स की कहानी बहुजन समाज की कई पीढ़ियों तक याद रहेगी.
मायावती की कहानी शिक्षा और राजनीति में प्रवेश की:
बहिन सुश्री मायावती ने अपने करियर को राजनीति के दांव पर लगा दिया.दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और कानून की डिग्री प्राप्त कर उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय से बीएड की डिग्री भी ली है.दिल्ली के एक स्कूल में वह शिक्षिका भी रही हैं.
हर इंसान का जीवन में कुछ न कुछ बनने का सपना होता है.बहिनजी ने भी IAS बनने का सपना देखा था.इस सपने को पूरा करने लिए वह तैयारी भी कर रही थी.
लेकिन 1977 को बहन मायावती की कहानी में एक नया मोड़ आता है.और वह अपने करियर को दांव पर लगा कर बहुजन समाज को राजनीतिक रूप से जगाने,वंचितों ,पिछड़ों,दलितों गरीबों और महिलाओं के आत्मसम्मान और स्वाभिमान को जगाने के लिए बहुजन समाज के महायोद्धा मान्यवर कांशीराम जी के साथ बहुजन समाजपार्टी में शामिल हो गयी.जानते हैं कैसे मान्यवर कांशीराम जी ने बहनजी का maindwash कर राजनीति में आने को तैयार किया.
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कांशीराम जी से प्रथम मुलाकात:
बहुजन आंदोलन के नायक मान्यवर कांशीराम जी 1977 में मायावती से उनके निवास पर मिले. उन्होंने बहिनजी से पूछा कि आपका लक्ष्य क्या है?बहिनजी ने कहा मैं एक आईएस अधिकारी बनना चाहती हूं.मान्यवर कांशीराम ने उनसे कहा आप हमारे साथ राजनीति में आ जाइये. कितने आईएस अधिकारी आपके आगे-पीछे घूमते रहंगे.मायावती जी कांशीराम जी से काफी प्रभावित हुई.और वह सब कुछ छोड़कर बहुजन आंदोलन में कूद पड़ी. 14 अप्रैल1984 में जब ‘ बहुजन समाज पार्टी’ बनी तो बहिनजी पूर्ण रूप से पार्टी की संस्थापक सदस्य बन गयी.तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति की कुशल खिलाड़ी बन गयी.1989 में बिजनौर लोकसभा सीट से चुनकर बहिनजी संसद पहुंची.
वंचितों में जगाया स्वाभिमान:
ज्योतिबा फुले,बाबा साहेब डॉ आंबेडकर, और मान्यवर कांशीराम जी के बाद बहिन मायावती ने वंचित,शोषित और पिछड़े समाज के लोगों में राजनीतिक चेतना के साथ-साथ स्वाभिमान भी जगाने का काम किया है.मायावती पर समय-समय पर कुछ न कुछ आरोप लगते रहे हैं.मगर राजनीति में रहकर आलोचना उन्हीं की होती है जो कुछ नया करने की जिद में रहते हैं.मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने बहुजन समाज के महापुरषों के नाम पर यूपी में कई नए जिले बनाये.जिनमें संतकबीर नगर,गौतमबुद्ध नगर,महामयननगर,सहित कुल 7 नए जिले बनाये.कुछ का नाम बाद में समाजवादी पार्टी की सरकार ने बदल दिए.साथ ही रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय का नाम महात्मा ज्योतिबाफुले विश्वविद्यालय के नाम से मायावती की सरकार ने किया.कांशीराम आवास योजना.
1995 में पहलीबार मुख्यमंत्री बनने पर बहिनजी ने लखनऊ में एक विशालकाय पार्क का निर्माण किया.जिसको अम्बेडकर स्मारक के रूप में जाना जाता गए.यह बहुजन प्रेरणा स्थल भी है.इस पार्क में बाबा साहेब,ज्योतिबाफुले, बिरसा मुंडा,नारायण गुरु,सहूजीमहाराज तथा कांशीराम जी की प्रतिमायें हैं.
उत्तराखंड के लिए बहिनजी का योगदान:
सिर्फ यूपी के लिए ही नहीं बहिनजी ने अविभाजित यूपी के उत्तराखंड में भी 4 नए जिले बनाये.उधमसिंह नगर,चंपावत ,रुद्रप्रयाग तथा बागेस्वर .उत्तराखंड राज्य पृथक हुए 20 साल पूरे हो गए हैं,मगर आज तक यहां एक नया जिला नहीं बना है.रानीखेत,डीडीहाट को जिला बनाने की वर्षों से मांग उठ रही है.बहिनजी ने जो कहा ओ किया.मगर जातिवाद की धरोहर को विरासत बनाये हुए समाज ने मायावती को उत्तराखंड में राजनीतिक जमीन को बंजर ही छोड़ दिया है.
मुख्यमंत्री के रूप में मायावती का सफर:
बहिन मायावती जी 1995 से 2012 तक 4 बार तक यूपी की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं.,ये भारतीय संविधान और नवजागरण का ही परिणाम है कि-जिस समाज ने शुद्र,पशु और नारी को सिर्फ ताड़न मात्र समझा हो,बहन मायावती की कहानी ने सारे शास्त्रों के मिथक तोड़ डाले.
देखते हैं बहिनजी कब से कब तक यूपी की मुख्यमंत्री बनी .
बेसिक
s.n. | कब से | कब तक |
1 | 3 जून 1995 | 18 अक्टूबर 1995 |
2 | 21 मार्च 1997 | 21 सितंबर 1997 |
3 | 3 मई 2002 | 29 अगस्त 2003 |
4 | 13 मई 2007 | 15 मार्च 2012 |
बहिनजी के पहले तीन शासन काल बहुत ही अल्प रहे.मगर मायावती जी ने वो कार्य कर दिखाए जो कोई भी मुख्यमंत्री अपने पूर्ण अवधि में कर सकता है.उनके अंदर एक निर्भीक और कुशल राजनीतिज्ञ की प्रतिभा छुपी हुई है.बहनजी ने ब्यूरोक्रेसी पर नियंत्रण रखते हुए स्वच्छ और पारदर्शी नीतियों को अंजाम दिया.
फिर भटक रहे हैं दलित संगठन?
बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने बहुत पहले घोषित कर दिया था कि ,-‘मेरे समाज को, मेरे ही समाज के पढ़े लिखे लोगों ने धोखा दिया है’आज दलित वर्ग जे व्यक्ति भी राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं.वो जब तक राजनीति की केजी कक्षा में होते हैं .बाबा साहेब, कांशीराम, ज्योतिबा फुले,पेरियार, नारायण गुरु और बहिनजी का गुणगान करते हैं.जब वो राजनीति की ABC कुछ सीख जाते हैं तो ,फिर मनुवादियों की झोली में गिर जाते हैं.ऐसे आडंबरवादियों से बहुजनों को सतर्क रहने की जरूरत है.
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