जातिवाद का जहर ने भारत के सामाजिक ताने-बाने को जितना कुरूप बनाया है उतना 21वीं सदी की सबसे बड़ी महामारी कोरोना ने नहीं बनाया है.जातिवाद की जड़े हिन्दू समाज में सदियों से नहीं वरन युगों से फैली हुई हैं .महाभारत काल में एक्लव्य ,रामायण काल में शम्बूक ऋषि जातिगत विषमताओं के शिकार हुए है.भारत को अगर अपनी प्राचीनतम सभ्यता पर गर्व होता है तो सायद वह चार वर्णों की संरचना पर होता होगा.

भारत में वर्णव्यवस्था:
भारत का समाज शास्त्र सिर्फ और सिर्फ चार वर्णों की सामाजिक व्यवस्था पर आधारित है.भारत ने अगर इतनी कट्टरता से जाति के बंधन को नहीं माना होता तो,आज भारतवर्ष की स्थिति कुछ और हो सकती थी.कोई ऐसा धर्मग्रन्थ नहीं जिसमें शुद्र,ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्यों का वर्णन न हो.
भारत के दो प्रमुख महाकाव्य महाभारतhttps://youtu.be/15VbaOwxD1Q तथा रामायण में भी जातिव्यवस्था और वर्णव्यवस्था पर आधारित कई प्रसंग पढ़ने को मिल जाते हैं.जैसे कि राम ने सबरी के हाथ के जूठे बेर खाये,क्योंकि सबरी नीच जाति की थी.केवट आदि नीच जाति के थे.इससे ये साबित हो जाता है कि जाति की जड़ों को हिन्दुत्व के महाकाव्यों में बसे तथाकथित भगवानों ,देवताओं ने सींच रखा है,तभी तो ये एक दैवीय शक्ति के रूप में व्याप्त है,लोग इस गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बाहर निकलना ही नहीं चाहते.चाहे हिन्दू धर्म विखण्डित ही क्यों न हो जाये ,जाति के जंजीर से जकड़े रहना हिन्दुओं की शान बन चुकी है.
मनुस्मृति में जातिवाद का जहर:
जातिवाद या जाति प्रथा अभी-अभी उपजी कोई नई बीमारी नहीं है ,भारत के हिन्दू समाज में जातिवाद का जहर घोलने में मनुस्मृति का अहम योगदान रहा है.इस ग्रन्थ में तथाकथित शूद्रों के लिए बहुत ही अमानवीय नियम बनाये गए हैं.आज के 21वीं सदी के मूल्यांकन की दृष्टि से इस पुस्तक में ऐसा हलाहल -जातिवाद का विष भरा हुआ है कि इस पुस्तक की मान्यताओं के प्रचलित रहते,इस देश में राष्ट्रीय एकीकरण का पौधा कभी पल्लवित और पुष्पित हो ही नहीं सकता.
मरने के बाद भी मनुस्मृति में जातिवाद:
जितना पालन आज भी भारत में मनुस्मृति का हो रहा है,उतना पालन भारत के संविधान का होता तो देश से जतिवाद का जहर और होता ही है,मरने के बाद भी ये साया छोड़ती नहीं है .एक श्लोक मनुस्मृति का देख लें .
“यदि कोई शुद्र मर जाये ,तो उसके शव को नगर के दक्षिण -द्वार -एक पृथक द्वार से ले जाए.वैश्य को पश्चिम से,क्षत्रिय को उत्तर से और ब्राह्मण को पूर्व -द्वार से”
जाति प्रथा का जहर पीती नारी:
जिन ग्रन्थों को भारत के उच्च वर्ग के हिन्दू अपना आदर्श मानते हैं,उन ग्रन्थों में शुद्र के साथ-साथ नारी को भी एक ही श्रेणी में रखा गया है.पहले देखते हैं तुलसीदास रचित रामचरितमानस में क्या लिखा है?
“ढोल, गंवार , शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़ना के अधिकारी” . रामचरितमानस
अब देखते हैं मनु महाराज क्या कहते हैं स्त्री के सम्बंध में.
स्वभाव एष नारीणां नराणामिह दूषणम।
अतोअर्थात्र प्रमाध्यन्ति परमदासु विपशिचित:।
(पुरुषों को दूषित करना ही नारियों का स्वभाव है.इसलिए ज्ञानी पुरुष स्त्रियों के विषय में कभी प्रमादी नहीं रहते).
जातिवाद के दुष्परिणाम:
- समाज में नफरत और द्वेष की भावना उतपन्न होती है.
- छुआछूत,भेदभाव को बढ़ावा मिलता है.
- एक वर्ग विशेष को समाज हीन भाव से देखा जाता है.
- समाज में समानता के अधिकारों का हनन होता है ,जो भारत के संविधान में मूल अधिकार है .
- जातिप्रथा राजनीति के लिए एक अच्छा प्लेटफार्म है जहां पर हर कोई नेता और राजनीतिक दल उतरना चाहता है.जिससे समाज का बंटवारा होता है.राजनीतिक द्वेष के साथ-साथ सामाजिक द्वेष भाव भी बढ़ता है.
- शासन से लेकर प्रशासन तक एक ही वर्ग विशेष का दबदबा रहा है.
- अछूतों /दलितों को मन्दिरो में प्रवेश पर मनाही होती है.देश के राष्ट्रपति कोविंद भी इसके शिकार हो चुके हैं.
- वर्णव्यवस्था (जतिवाद) आरक्षण की जननी है.और आरक्षण पर भारत का समाज सवर्ण और अवर्ण में बंटा है जो सामाजिक पर्यावरण को दूषित कर रहा है.
- सदियों से हिंदुस्तान विषमताओं के कारण कुरुपित हो चुका है,हिंदुस्तान को सबसे अधिक कुरुपित हिंदुत्व के अंदर व्याप्त जातिभेद ने किया है.
क्यों कहा आगे रामराज है? जानें सच:
उत्तरप्रदेश भगवान राम की जन्मभूमि है.अयोध्या में भव्य राममंदिर बनने जा रहा है. हमने जो कहानियों की किताबों में रामराज की स्टोरी पड़ी थी कि रामराज में जनता खुशहाल थी,सुखी थी और भयमुक्त थी.लेकिन वर्तमान में उसी राम की जन्म स्थली बेटियों की ,महिलाओं की ,गरीबों की और तथाकथित दलितों की खून से लतपथ हो रही है ,जो रामराज्य की कल्पना पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है.अगर हाथरस की घटना (दलित लड़की के साथ बलात्कार के बाद हत्या की गई और पुलिस ने पीड़िता के घरवालों की अनुपस्थिति में ही शव को जला डाला) अगर ये सच है तो क्या ये साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि जातिवाद का जहर हिंदू समाज में कण-कण में समाया हुआ है.
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कैसे मिटेगा जतिवाद दाग?
क्या आप अपने मुल्क को दागरहित देखना चाहते हैं?अगर आप चाहते हैं कि हिंदुस्तान से जाति का दाग मिटना चाहिए तो आप किस तरह से इस दाग को मिटा सकते हैं?क्या आपको नहीं लगता कि जाति के कारण भारत की राजनीति दूषित हो चुकी है.हमको जातियों से बाहर निकलना ही होगा.अन्यथा फिर से कोई बाबर,गोरी और इस्टइंडिया कंपनी गिद्ध नजरों से हिंदुस्तान की तरफ देखने लगे!फिर कोई भगत सिंह और गांधी पैदा नहीं होंगे.
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DISCLAIMER–इस लेख का मकसद सिर्फ हिंदुत्व की बुराई करना नहीं है.वरन उसनें व्याप्त कुरीतियों और कुप्रथाओं पर प्रहार करना है.ये लेख सिर्फ और सिर्फ उन लोगों को जागरूक करने के लिए है ,जो अभी तक आँखों में अंधविश्वास और जातिप्रथा की पट्टी बांधे हुए हैं.राजनीति से प्रेरित लोगों को अपनी राजनीति के लिए जमीन तैयार करनी होती है,और जातिगत विषमता उनको जमीन प्रदान करती है.राजा राम मोहनराय,सी राजगोपालाचारी,आदि उच्च जाति के थे लेकिन उन्होंने जतिवाद की दीवार को तोड़ने में जीवनभर प्रयास किया..
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