सामान्य ज्ञान उत्तराखंड के इस नए एपिसोड में आपका फिर से स्वागत है.आशा है पिछले अंक आपको पसन्द आ रहे होंगे.हमारी पूरी कोशिश है कि अच्छी से अच्छी सामग्री पाठकों तक पहुंचाई जाए.उत्तराखंड सामान्य ज्ञान ,किसी भी सरकारी विभाग में जाने के लिए जो भी परीक्षाएं होती हैं,उनके लिए जरूरी है.आज के इस अंक में जनपद हरिद्वार की संपूर्ण सामान्य जानकारी को समेटकर लाये हैं.हरिद्वार जिला धार्मिक रूप से जगविख्यात है.खासकर यहां हर 12 साल में महा कुंभ लगता है.जिसमें देश-विदेश के लोग सरीख होते हैं.देखने के साथ-साथ यहां की जानकारी परिक्षापयोगी भी होती है.
सामान्य ज्ञान उत्तराखंड:हरिद्वार का संक्षिप्त इतिहास

भाग-1
जनपद का इतिहास
हरिद्वार को गंगाद्वार या चारों धामों का द्वार कहा जाता है जो शिवालिक श्रेणी के बिल्व व नील पर्वतों के मध्य गंगा की दाहिने तट पर स्थित है यहीं से गंगा नदी मैदान में उतरती है पुराण तथा संस्कृत साहित्य में इसे गंगाद्वार, देवताओं का द्वार, तीर्थ स्थलों का प्रवेश द्वार, चारों धामों का द्वार, स्वर्ग द्वार, मायापुरी या मायाक्षेत्र आदि नामों से जाना जाता है
◆शिव के उपासक जो केदारनाथ की यात्रा पर जाते हैं इसे शिव से जोड़ते हुए हरद्वार तथा वैष्णो मतवाले यात्री बद्रीनाथ की यात्रा करते हैं इसे हरिद्वार कहते हैं
◆ रामायण काल में यहां कपिल मुनि का आश्रम था इसके नाम पर हरिद्वार को कपिला भी कहा जाता है
◆ चीनी यात्री ह्वेनसांग हरिद्वार को मो- यु–लो कहा जिसका क्षेत्रफल 20ली0 बताया इसने गंगा को महाभद्रा कहा
◆ प्राचीन इतिहासकारों के अनुसार क्षेत्र का वन खांडववन के नाम से प्रसिद्ध था जिसमे पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान चुप कर रहे धृतराष्ट्र, गांधारी तथा विदुर ने अपना शरीर यहीं त्यागा था और विदुर ने मैत्रेय ऋषि को महाभारत कथा यही सुनायी थी
◆ सप्त ऋषि द्वारा इस स्थान पर तप करने के कारण यहां गंगा को सात धाराओं में होकर बहना पड़ा
◆ जैन ग्रंथों के अनुसार 1000 वर्ष पूर्व प्रथम जयंती तक भगवान आदिनाथ ने मायापुरी( हरिद्वार) क्षेत्र में रहकर तपस्या की थी
◆ अकबर काल का इतिहासकार अबुल फजल आईने अकबरी में लिखता है की माया ही हरिद्वार के नाम से जानी जाती रही है वह यह भी लिखता है कि अकबर के रसोईघर में गंगाजल ही प्रयुक्त होता था यह जल यहीं से अकबर बड़े बड़े घडों में मंगाया करता था
◆ 1399 में तैमूर लंग भी आया था इसके इतिहासकर सरुउद्दीन ने हरिद्वार को कपिला कहा है
◆1608 में जहांगीर के शासनकाल में पहला यूरोपियन यात्री टॉम कायरट हरिद्वार आया था उसने हरिद्वार को शिव की राजधानी कहां स्वयं जहांगीर 1620 में कुछ दिनों के लिए हरिद्वार आ कर रहा था
◆ गोरखा शासनकाल में हरिद्वार दासों का बिक्री केंद्र बन गया था
◆ महात्मा गांधी ने 1915 और 1927 में हरिद्वार की यात्रा की थी
◆ हरिद्वार जिले का गठन 28 दिसंबर 1988 को किया गया था 1988 से लेकर राज्य गठन तक यह सहारनपुर मंडल तथा गठन के बाद इसे गढ़वाल मंडल का एक जिला बना दिया गया, इसे उत्तर भारत का केरल भी कहा जाता है
जनपद की भौगोलिक स्थिति
◆ राज्य के मात्र 2 जिले मैदानी क्षेत्रों में आते हैं उनमें से एक हरिद्वार और दूसरा उधम सिंह नगर है
◆ हिमालय द्वारा लाई गई नदियों के निक्षेप से गंगा के मैदानी क्षेत्रों का विस्तार हुआ
◆ जिले का क्षेत्रफल 2360 वर्ग किमी है
◆ जिले की सीमाएं देहरादून और पौड़ी गढ़वाल से लगती हैं और तीन ओर से उत्तर प्रदेश से घिरा हुआ है
हरिद्वार जनपद का प्रशासन
◆ जिले की कुल जनसंख्या-1890422
◆ विधानसभा क्षेत्र-11
◆ विकासखंड –06
◆ तहसील-04
◆ जिले का लिंगानुपात-880
◆ जनपद का जनघनत्व-801
◆ हरिद्वार की साक्षरता दर-73.43%
◆ इसे 2011 में नगर निगम बनाया गया
◆ सर्वाधिक नगरों वाला जिला भी है-24
◆ जनसंख्या की दृष्टि से राज्य में प्रथम स्थान है
◆ राज्य का सर्वाधिक जनघनत्व वाला जिला भी है
◆ सबसे कम लिंगानुपात वाला जिला भी है
◆ सर्वाधिक विधानसभा की सीटें हरिद्वार जिले में है(11)
हरिद्वार जनपद की प्रमुख धार्मिक एवं दर्शनीय स्थल
◆ पौराणिक ग्रंथों में यहां की पाँच तीर्थों को महत्वपूर्ण बताया गया है – हर की पैड़ी, कुशावर्त, नील पर्वत, कनखल, व बिल्प पर्वत
हर की पैड़ी
राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भृतहरि की याद में पैड़ियों(सीढियों) का निर्माण किया जिसे भृतहरि हरि की पैड़ी कहा जाता है कालांतर में यही हरकी पैड़ी हो गया राजा विक्रमादित्य ने यहां एक भवन भी बनाया था जो भवन आवेशों के रूप में डाटवाली हवेली के नाम से आज भी हर की पैड़ी के पास स्थित है अकबर सेनापति मानसिंह ने हर की पैड़ी का जीर्णोद्धार कराया यहां पवित्र स्नान ब्रह्मकुंड के रूप में भी जाना जाता है ऐसी मान्यता है कि यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है
◆ राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भृतहरि ने हरिद्वार के शिवालिक श्रेणी पर तपस्या की और दो महान ग्रंथों नीति शतक व वैराग्य शतक की रचना की थी
◆ गऊघाट
ब्रह्मा कुंड की दक्षिण स्थित इस घाट पर स्नान करने से मनुष्य गौ हत्या के पाप से मुक्ति पा जाता है
◆कुशावर्त घाट
गौ घाट के समीप है यहां पर दत्ताऋषि ने एक पैर पर खड़े होकर घोर तपस्या की थी गंगा के प्रवाह में उनके कुश आदि बह गए उनके कुपित होने पर गंगा ने उन्हें वापस किया और इस स्थान का नाम कुशावर्तघाट पड़ा इस घाट का निर्माण महारानी अहिल्याबाई ने कराया था
◆ शांतिकुंज
आचार्य प्रवर पंडित श्रीराम शर्मा के संरक्षण में शांतिकुंज की स्थापना 1971 में हुई इस संस्थान में नित्य गायत्री यज्ञ व साधना होती है आज यह स्थान गायत्री तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित है
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