आजादी के बाद 565 देशी रियासतों को भारत संघ में मिलाने की कठिन चुनौती खड़ी थी.इस चुनौती को स्वीकार किया सरदार वल्लभभाई पटेल ने.उन्होंने इन 565 देशी रियासतों, राजा रजवाड़ों को भारत में विलय करवाने में अहम भूमिका निभायी थी.इसी कारण 31 october को उनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय एकता दिवस (National unity day)के रूप में मनाया जाता है.
सरदार वल्लभभाई पटेल की जीवनी (Life story of Sardar Patel)
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के एक किसान परिवार में हुआ था. उन्हें हिंदू, उर्दू, फारसी में सरदार कहा जाता था जिसका अर्थ है “प्रमुख।” बचपन से ही वह निडर स्वभाव के व्यक्ति थे और इसी निडरता , दृढता , आत्मबल , अटल निर्णय शक्ति , साहस एवं कार्य के प्रति लगन के कारण ही वह “लौह पुरूष” के नाम से जाने जाते हैं.

“राष्ट्रीय एकता दिवस की शुरुवात कब से हुई.
बचपन से ही निडर और नेतृत्व के गुण :
31 october 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी शुरुआत की .’आयरन मैन’सरदार वल्लभभाई की जयंती को तब से हर वर्ष राष्ट्रीय एकता दिवस (National Unity Day)के तौर पर मनाया जाता है.सरदार पटेल आजाद भारत के पहले उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे.
उनकी निडरता का प्रमाण उनके स्कूल के दिनों से देखने को मिलते है.उनके स्कूल में उनके अध्यापक द्वारा बच्चो को अपनी ही दुकान से पुस्तक खरीदने के लिए विवश किया जाता था .परन्तु पटेल ने इस अन्याय के खिलाफ बच्चों की हड़ताल करवा दी. अध्यापक और बच्चों की इस जंग में बच्चों की जीत हुई. और अध्यापकों द्वारा पुस्तकें बेचने की प्रथा खत्म हो गयी.
सरदार पटेल सक्रिय राजनीति में प्रवेश:
देश की सक्रिय राजनीति में 1917 में आये. जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में बैरिस्टरी त्याग दी.स्वतन्त्रता संग्राम में उनक पहला एवं सबसे बड़ा योगदान 1918 में खेड़ा संघर्ष में हुआ. गुजरात के खेड़ा जिले में फसल सूखे के चपेट में आ गया , बावजूद इसके भी सरकार ने किसानों से मालगुजारी वसूल करने की प्रक्रिया जारी रखी.
सरकार ने किसानों को कर में छूट देने से इनकार कर दिया तो सरदार पटेल , गांधीजी एवं अन्य लोगो ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हें कर न देने के लिए प्रेरित किया. सरकार को झुकना पड़ा और कर में किसानों को राहत दी गयी. इस प्रकार सरदार पटेल की यह पहली सफलता थी.
कैसे मिली ‘सरदार ‘की उपाधि:
वल्लभभाई पटेल को उनके द्वारा किये गए कार्यों के लिए अलग-अलग उपाधियां दी गयी हैं.’उनकी दृण इच्छा शक्ति और कठोर निर्णय लेने की क्षमता उनको ‘लौह पुरुष’ बनाती है.और बिखरे हुए भारतीय रियासतों का एकीकरण करके उन्होंने राष्ट्रीय एकता को मज़बूत किया.राष्ट्रीय एकता दिवस तभी मनाया जाता है.वल्लभभाई पटेल द्वारा गुजरात के बारदोली में 1928 में हुए किसानों के आंदोलन का नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया.
सरकार द्वारा किसानों पर लगाये गए अनावश्यक लगान का विरोध कर सरकार को लगान पर कमी करने के लिए विवश कर दिया. इस आंदोलन में सफल होने के बाद वहाँ की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की.
RSS पर लगाया था प्रतिबंध:
30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हुई.इस हत्या के पीछे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी RSS का षड्यंत्र होने का आरोप लगा.सरदार पटेल तब गृह मंत्री थे.उन्होंने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया.1949 में इस शर्त पर प्रतिबंध हटाया कि-RSS राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं लेगा.
संघ को अपना संविधान निर्माण करना होगा.
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी(Statue Of Unity):
गुजरात में सरदार सरोवर बांध के तट पर विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाई गई है.182 मीटर ऊंची यह मूर्ति ‘भारत के ‘लौह पुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल की है.इसको ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी'(Statue of Unity) नाम दिया गया गए.राष्टीय एकता और अखंडता के लिए उनके द्वारा किए गए कार्य कहीं अधिक ऊँचे हैं.

30000 करोड़ रुपये की लागत से बनी इस मूर्ति का अनावरण 31 अक्टूबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया.
सरदार पटेल के सम्मान और उपाधियाँ:
सरदार पटेल को उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए कई समान और उपाधियों से नवाजा गया है.
भारत का बिस्मार्क किसे कहा जाता है?
जर्मनी का एकीकरण वहां के नेता “ओटो वॉन बिस्मार्क”ने किया था.और भारत एकीकरण सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया था, इसलिए उनको भारत का बिस्मार्क की उपाधि दी गयी है.
“लौह पुरूष “
दृण संकल्प और ठोस निर्णय करने की क्षमता उनको लौह पुरूष बनाती है.
भारत रत्न और अन्य स्मारक:
सरदार वल्लभभाई पटेल को 1991 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया.जो वास्तव में इसके हकदार थे.
गुजरात के अहमदाबाद हवाई अड्डे का नाम उनके सम्मान में सरदार वल्लभभाई पटेल अंतराष्ट्रीय विमानक्षेत्र रखा गया है.
- वल्लभ विद्या नगर गुजरात में सरदार पटेल विश्वविद्यालय खोला गया है.
सरदार की उपाधि
वरदोली आंदोलन का सफल नेतृत्व करने के उपरांत वहां की महिलाओं ने इनको “सरदार” की उपाधि दी.
सरदार पटेल की मृत्यु
15 दिसंबर 1950 को मुंबई में हार्ट अटैक से इनका निधन हो गया.भारत के लिए सरदार पटेल का योगदान हमेसा स्मरणीय रहेगा.
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